अबके सावन में ये सजनी कुछ जियरा ऐंसे डोलत है
अबके सावन में ये सजनी, कछु जियरा ऐंसे डोलत है
कछु खोबत हैं कछु पाबत है, कभी सोबत है कभी जागत है
पाबत है सावन के आनंद, खोवत है प्रियतम का संग पिया गए परदेश सखि, उनकी याद सताबत है
बिजुरी चमकै बदरा गरजै, नींद मेरी उड़ जाबत है
चैन नहीं दिन रैन सखि, ये सावन और रिझाबत है
अंधियारी नम रातों में, जब आंख मेरी लग जाबत है
पिया स्वप्न में आते ही, नींद मेरी खुल जाबत है
सावन की ठंडी फुहार,जिया में आग लगाबत है
दादुर मोर पपीहा सजनी, पिया पिया रट गाबत है अबके सावन में ये सजनी, कछु जियरा ऐंसे डोलत है कछु खोबत है कछु पाबत है न सोबत है न जागत है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी