“अफ़साना तेरा मेरा”
🌷अफ़साना तेरा मेरा🌷
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ओहो ! कितना खूबसूरत था वो ज़माना ,
तेरे मेरे बीच जब बनता था कोई फ़साना।
दिन – रात रहता था इंतज़ार बस तेरा ही ,
ना कोई पता था, ना ही था कोई ठिकाना।
तेरे लिए था उस वक्त मैं बिल्कुल बेगाना ,
मकसद होता था तेरा इक दरस पा जाना।
हर लम्हा गुजरता था तेरी यादों के साये में ,
तूने भी मेरे दिल को बड़े ही करीब से जाना।
तेरी ऑंखोंं में मेरे लिए प्यार नज़र आना ,
पर उन बातों को तेरी जुबाॅं तक ना आना।
तसव्वुर में बस उड़ान तक ही सिमट जाना,
मुझे तो लगता है कि था वो इक बचकाना।
याद है छोटी सी बातों पे तेरा यूॅं रूठ जाना ,
कई दिनों तक मुझसे बातें नहीं कर पाना ।
मकसद होता था तेरा बस मुझे ही तड़पाना ,
बताऊंगा दुनिया को तेरे संग वो अफ़साना ।
पर वो सब तो हो गया इक किस्सा पुराना ,
तेरे संग मिल गाया था जो गीत औ तराना ।
ये दिल मेरा हो गया है आज कितना वीराना ,
तूने ढूंढ़ा है जो अपना इक नया सा ठिकाना।
आगे मुझे दिलों के ज़ख़्म नहीं कुरेदना ,
नहीं तो होगा फिर से हराम हमारा जीना ।
यादों को संजोए हैं डायरी का हरेक पन्ना ,
हो सके तो अगले जन्म में मुझे मिल जाना ।
इस जन्म का तो यही है तेरा मेरा अफ़साना।।
( स्वरचित एवं मौलिक )
~अजित कुमार “कर्ण” ✍️
~किशनगंज ( बिहार )
( स्वरचित एवं मौलिक )
दिनांक :- 02 / 03 / 2022.
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