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16 Dec 2021 · 5 min read

अफसर की मुस्कुराहट (कहानी)*

अफसर की मुस्कुराहट (कहानी)
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सरकारी दफ्तरों में काम कराने में मुश्किल तो आती है । मेरा यह चौथा चक्कर था । अफसर फाइल पास करके नहीं दे रहा था । वैसे तो करीब पाँच महीने से मामला अटका हुआ था। नीचे के बाबू से भी संपर्क हुआ लेकिन उसका कहना था कि साहब के हस्ताक्षर के बगैर कुछ नहीं हो सकता। मैंने कहा “तो उनके हस्ताक्षर भी करा लो ! हस्ताक्षर करना कौन बड़ी बात होती है ! ”
सुनकर बाबू हँसने लगा । बोला ” हस्ताक्षर वैसे तो बहुत आसान होते हैं लेकिन हमारे साहब हस्ताक्षर नहीं करते।”
मैंने आश्चर्य से पूछा “क्यों ? क्या अनपढ़ हैं ?तो अंगूठा लगवा लो ।”
सुनकर बाबू खिलखिला कर हँसने लगा। बोला ” खाते नहीं हैं ।”
मैंने कहा “क्या नहीं खाते हैं ?”
वह आश्चर्य से मेरा मुँह देखने लगा। बोला “रिश्वत ! और क्या ! ”
मैंने कहा” कमाल है !रिश्वत नहीं खाते और अफसर बन गए ! सरकारी कार्यालय में ऐसे लोगों के बैठने का क्या काम है ?”
अब मैं सीधा अफसर के पास चक्कर लगाने लगा । अफसर वाकई बहुत कड़क- मिजाज और रुखा आदमी था । उसके पास एक -एक घंटे बैठकर अपनी फाइल दिखाते रहो लेकिन मुस्कुराने का नाम नहीं लेता था। हर समय सूखा चेहरा ! जैसे बारह महीने का पतझड़ का मारा हुआ हो ।
एक दिन मैंने सोच ही लिया कि इससे रिश्वत की बात करनी ही पड़ेगी। दरअसल एक तो यह था कि मैं दफ्तर के चक्कर काटते-काटते थक गया था। दूसरी बात यह थी कि मैं संदेह कर रहा था कि अफसर ईमानदारी का नाटक कर रहा है। वास्तव में यह ज्यादा रकम पकड़ना चाहता है ।
मेरी फाइल पास करने का रेट आमतौर पर पच्चीस हजार रुपए होता था । आखिर मैं एक दिन जेब में पचास हजार रुपए डाल कर अफसर के पास पहुँच गया । सोचा, आज काम करा कर ही उठूँगा । मैंने अफसर के पास जा कर फाइल दिखाने की औपचारिकता निभाई और फिर उससे सीधे-सीधे कहा ” मैं पच्चीस हजार रुपए दे दूँगा। फाइल पास कर दो । ” बाकी पच्चीस हजार रुपए मैंने मोल – भाव के लिए जेब मैं ही रखे थे।
सुनकर अफसर का चेहरा बहुत सख्त हो गया और उसके मुँह से शायद कुछ आपत्तिजनक शब्द निकलते ,लेकिन तभी उसके मोबाइल की घंटी बज उठी और वह बातचीत करने में लग गया । मोबाइल पर बातचीत बहुत साफ आवाज में हो रही थी और मैं सुनने लगा ।
“गुप्ता जी ,इस बार रिश्ते के लिए हाँ कह ही दीजिए वरना यह चौथा रिश्ता है जो पैसे की वजह से टूट रहा है । ”
उधर से यह आवाज आई थी और जिसका जवाब सीट पर बैठे हुए अधिकारी ने यह कह कर दिया था “मैं दस लाख रुपए रुपए खर्च करने के लिए तैयार हूँ। दस लाख रुपए कम नहीं होते।”
” गुप्ता जी, दस लाख रुपए की तो केवल कार आएगी । पंद्रह लाख रुपए होटल में रहने और खाने का पेमेंट बैठेगा। पच्चीस लाख से कम में आजकल शादियाँ कहाँ होती हैं?”
“मेरे पास इतना पैसा कहाँ है ? ज्यादा से ज्यादा पंद्रह लाख खर्च कर सकता हूँ। आप बात कर लीजिए । अगर स्वीकार हो तो रिश्ता पक्का कर दें ।”
“अरे साहब ! पक्का होने में क्या कसर रह गई है ? लड़के ने लड़की को देख लिया। लड़की ने लड़के को देख लिया । आपने, दोनों के परिवारों ने एक दूसरे को समझ लिया । अब बचा क्या है ? आप पंद्रह लाख खर्च करने को तैयार हैं। दस लाख और खर्च कर दीजिए । गंगा नहा जाएँगे ।”
” कैसी बातें आप कर रहे हैं? दस लाख रुपए क्या पेड़ पर लटकते हैं ? मेरा वेतन आप जानते हैं । बहुत ज्यादा नहीं है । हाँ ,सरकारी बंगला मिला हुआ है और सरकारी वाहन ड्राइवर सहित उपलब्ध है। इसलिए आपको मैं बड़ा आदमी नजर आता हूँ।”
” सोच लीजिए भाई साहब ,लड़की कहीं कुँवारी बैठी न रह जाए ! आपके आदर्शों की जिद उसकी जिंदगी बर्बाद कर देगी। गहराई से सोचिए । पैसा कमाना आप के बाएँ हाथ का खेल है।”
सुनकर अधिकारी चिंता की मुद्रा में आ गया । उसका बायाँ हाथ अपने सिर के बालों को सहलाने लगा। कुछ सेकंड सोचते रहने के बाद अधिकारी ने दबी जुबान से कहा ” आप पच्चीस लाख रुपए में हाँ कर दीजिए। अठारह लाख रुपए मेरे पास मौजूद हैं । बाकी सात लाख रुपए मैं शादी के बाद धीरे-धीरे दे दूंगा ।”
” आप इसकी चिंता न करें। मैं आपसे बाद में लेता रहूंगा । लड़के वालों को तो फुल पेमेंट करना ही पड़ेगा । तो फिर मैं शादी के लिए हाँ कह दूँ ? ”
अधिकारी ने मरे स्वर में उत्तर दिया ” हाँ! कह दीजिए।”
इसके बाद उनकी बातचीत समाप्त हो गई । मैं बैठा हुआ अपने को भाव-शून्य दर्शा रहा था । ताकि अधिकारी को यही लगे कि मैंने कुछ नहीं सुना ।
पहली बार अधिकारी ने मुझे मुस्कुरा कर देखा । इतने महीनों में मुझे उसका पहली बार मुस्कुराता हुए चेहरा देखकर अच्छा नहीं लगा । वह शायद मजबूरी में मुस्कुरा रहा था। सचमुच उसने अपने चेहरे पर भरपूर मुलायमियत लाते हुए मुझसे कहा “आपकी फाइल मैं पास कर दूंगा । बीस हजार रुपए चाहिए ।”
मैं जेब में पचास हजार रुपए लेकर गया था । पच्चीस हजार रुपए का रेट चल रहा था । मुझे तो यह भी शक था कि पता नहीं पचास हजार रुपए में भी मामला निपटे या नहीं ? ऐसे में बीस की बात सुनकर मेरा खुश होना स्वाभाविक था । मैंने झट जेब से बीस हजार रुपए निकाल कर अधिकारी को दे दिए । अधिकारी बहुत परेशान होते हुए मुझसे कहने लगा “आप मुझे गलत मत समझिए । मैं मजबूर हूँ।”
मैंने कहा “मैं आपकी मजबूरी समझता हूँ।”
वह मेरे यह कहने पर आश्चर्यचकित होकर मुझे देखने लगा । दरअसल उसे बिल्कुल भी अनुमान नहीं था कि मैं उसकी बात सुन रहा हूँ और सब कुछ समझ गया हूँ। फिर उसने कहा “और किसी को फाइल पास करानी हो तो आप भेज देना। मैं फाइल पास कर दूंगा । ”
मैंने कहा “बिल्कुल सही बात है ।जैसा आप कहेंगे, वैसा ही होगा ।” अफसर ने फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए और मैं फाइल लेकर चला आया ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
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