*अफसर की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी *
चर्चा का विषय था अफसर
अफसर के पास या अफसर से दूर
एक मोहतरमा ने फ़रमाया
भूरजी – अफसर की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी से बचना चाहिए
दोनों में ही ख़तरा है नुकसान है।
मैंने कहा मैडम- वो जमाना ओर था
जब अफ़सर घोड़े हुआ करते थे हर काम स्फूर्ति से दौड़े किया करते थे
अब जमाना ओर है,करना ज़रा गौर-
अब अफ़सर की अगाड़ी से नुकसान कम फ़ायदा ज्यादा हुआ करता है
आज के अफ़सर घोड़े नहीं हुआ करते हैं घोड़े तो एक ही लात मारते हैं आगे वाला तो बच जाता है,मगर पीछे वाला वहीं ढेर हो जाता है ।
क्योंकि पीछे की लात ज़रा जोर से लगती है बड़ी तबीयत से आगे की टांगों के सहारे पीछे जोर से उठाकर मारी जाती है,ताकि सम्भल ना सके पिछला, मार इतनी जोर की लगती है कि आवाज़ तक नहीं निकलती ।
ऐसा लगे जैसे जोर का झटका धीरे से लगा। न आगे वाले को पता ना पीछे वाले को पता चले ।
अफ़सर से बचना है तो अगाड़ी में खड़े हो जाइये करना कुछ नहीं सिर्फ खड़े होना है ।
वरना सम्भलने का मौका ना मिलेगा
पीछे खड़े होने से पहले ज़रा
सोच लो ।।
?मधुप बैरागी