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25 May 2022 · 3 min read

#अफवाह_आजकल_फॉरवर्ड_होती_है (हास्य व्यंग्य)*

#अफवाह_आजकल_फॉरवर्ड_होती_है (हास्य व्यंग्य)*
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आदमी के सिर और पैर दोनों होते हैं । अफवाह का न सिर होता है न पैर अर्थात चलने के लिए और सोचने के लिए इसके पास कुछ नहीं है । लेकिन फिर भी अक्ल से पैदल अफवाह आँधी की रफ्तार से दौड़ती है।
जब से व्हाट्सएप आया है ,अफवाह कुछ ज्यादा ही फैलने लगी है । इधर व्हाट्सएप पर मैसेज आया ,उधर बंदे ने उसे फॉरवर्ड कर दिया । आधे मिनट के लिए भी दिमाग पर जोर नहीं डाला कि समाचार की पुष्टि टेलीविजन से कर ली जाए । न्यूज चैनल चौबीसों घंटे चल रहे हैं । थोड़ा-सा कष्ट करके टीवी खोल लिया जाए ! लेकिन नहीं ,सबसे पहले समाचार पहुंचाने के लोभ ने मनुष्य की बुद्धि को हर लिया है । बिना सोचे समझे मैसेज फॉरवर्ड करने वाले लोग समूचे भारत में कोई दो चार नहीं होते ,हजारों – लाखों की संख्या में लोग केवल फॉरवर्ड करना ही जानते हैं । एक अफवाह आई और हजारों-लाखों ने करोड़ों तक पहुंचा दी । अब बैठकर उसका खंडन करते रहो । खंडन उतना नहीं फैलता ,जितनी अफवाह फैलती है । खंडन को पढ़ने में भी मजा नहीं आता । बहुत-सी बार खंडन तो हो जाता है लेकिन फिर भी अफवाह चलती रहती है । अफवाह की खूबी यह है कि यह मजेदार होती है । सुनने-पढ़ने और देखने में मजा आता है । आदमी दूसरे के फोन में बताता है – “देखो यह खबर आई है । ” दूसरा ,तीसरे के फोन में बताता है ।
जब पहले व्हाट्सएप नहीं होता था ,तब भी अफवाह फैलती थी । तब भी इसका स्वरूप फॉरवर्ड करने का ही होता था । बस फर्क यह रहता था कि यह मोबाइल पर मैसेज के स्थान पर कानाफूसी के जरिए फॉरवर्ड होती थी ।
कई बार अफवाह भोली-भाली और मासूम होती है । बस केवल एक गुदगुदी पैदा करती है और निकल जाती है । कई बार अफवाह के हाथ में चाकू ,छुरी ,कटार ,तलवार ,बंदूक और बम का गोला भी होता है । यह फैलती है और आग लगा देती है । जगह-जगह नफरत तथा हिंसा फैलाकर जाती है । इसका दुष्परिणाम लंबे समय तक समाज और देश को भुगतना पड़ता है । अफवाह फैलाने वाले लोग कई बार सीधे-साधे होते हैं । उन्हें यह भी नहीं पता होता कि वह अफवाह फैला रहे हैं । वह तो समझते हैं कि यह खबर है ,जो वह साधारण तौर पर फारवर्ड कर रहे हैं। लेकिन अनेक बार चतुर और चालाक लोग जिन्हें शातिर कहना चाहिए ,अफवाह को बहुत सुनियोजित ढंग से फैलाते हैं । यह पूरा गैंग अफवाह के ऊपर काम करता है । एक पूरी रिसर्च होती है । किस अफवाह को किस तरीके से फैलाया जाए ? कब फैलाया जाए ? किन-किन क्षेत्रों में फैलाया जाए ?उस अफवाह के फैलते ही उस पर किस प्रकार से आगे की कार्यवाही करनी है ? एक शातिर दिमाग इसके पीछे काम करता है । ऐसी अफवाहें बड़ी भयावह होती है ।
समाज में ज्यादातर लोग अधिक बुद्धि नहीं रखते । अफवाह को देखते ही उसे गले से लगा लेते हैं । पूछते हैं ” बहन तुम इतने दिनों बाद आई हो । हमें तो तुम्हारे बगैर रोटी-सब्जी में भी आनंद नहीं आया आ रहा था । बैठो ,कुछ बताओ ,तुम्हारे पास क्या है ?”
अफवाह को तो ऐसे लोग चाहिए ही । वह उनके साथ घंटा-आधा घंटा बिता कर उन्हें भरपूर मसाला देकर आगे अगले पड़ाव के लिए चली जाती है । अफवाह की हर जगह खातिरदारी होती है । सब लोग जैसे ही अफवाह आती है ,कान लगाकर उसे सुनना शुरू कर देते हैं ।
“वह देखो ! सामने से अफवाह जा रही है ! ” लोग बुलाते हैं । कहते हैं “कोई नई-पुरानी खबर हो ,तो बताओ ।”
अफवाह एक-एक करके जगह-जगह रूकती है । अपनी मधुर चितवन से सबको मस्त करती हुई आगे बढ़ती जाती है । अफवाह का कोई मुकाबला नहीं कर सकता ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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