अपेक्षा
क्या कहूंँ उनसे ,
बागों में खिलते हैं वो।
अक्सर मुस्कुराते हैं,
खुद को समर्पित करते,
राह है उनकी अनजान,
अपेक्षा कैसे करें ।
क्या कहूंँ उनसे….।।१।
दर्द भी है मिशाल,
प्रेरित करते उनको,
देते जो अपने प्राण,
ये है वीर जवान; वीर जवान ।
क्या कहूंँ उनसे….।।२।
सुगंधित करते ईश को,
कर चरणों में विराजमान,
पल भर का जीवन उनका,
देते प्रसन्ता की मुस्कान ।
क्या कहूंँ उनसे….।।३।
बांधते स्वयं को,
एक डोर और गांँठ में,
जीवन भर बंध जाते,
मधुर बंधन में इंसान ।
क्या कहूंँ उनसे…..।।४।
मध्यम-मध्यम ताप में,
मुरझा जाते ये अनजान,
केश में हैं सजते,
बन नारी का श्रृंगार ।
क्या कहूंँ उनसे…….।।५।
हृदय-विदारक बन्धु भी,
सीखें प्रेम का वाचाल,
तन नहीं ये मन भी,
हर लेते हैं संसार ।
क्या कहूंँ उनसे……।।६।
स्वयं को अर्पित करते,
खुशियां देते हैं अपार,
बस यही अपेक्षा उनसे,
हृदय में जो बसते हैं ।
क्या कहूंँ उनसे……।।७।
#बुद्ध प्रकाश , मौदहा (हमीरपुर)