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27 Jun 2021 · 1 min read

अपलक निहारूं तुझे…

अपलक निहारूं तुझे,
दिल में सजा लूँ तुझे,
एक बार तो सन्मुख आओ कान्हा !
पलकों में बिठा लूँ तूझे।

एक बार तो सन्मुख आओ कान्हा !
पलकों में बिठा लूँ तूझे,
अपलक निहारूं तुझे…

जब भी तुम होते हो नजरों से ओझल,
पल-पल मैं मरता हूँ, कर्मों से बोझल।
दे दे मुझे बस तुम, भक्ति के आँसू,
अहर्निश तेरे बिन,अविचल छलकता रहे।

एक बार तो सन्मुख आओ कान्हा !
पलकों में बिठा लूँ तूझे।
अपलक निहारूं तुझे…

तेरी बिछुड़न की कल्पना मात्र,
मन सिहर-सिहर रो जाता है।
यदि संग होते जो तुम मेरे,
तन- मन निर्मल हो जाता है।

एक बार तो सन्मुख आओ कान्हा !
पलकों में बिठा लूँ तूझे,
अपलक निहारूं तुझे..

अपने चरणों में यदि जगह दे थोड़ी,
प्रतिक्षण सेवा करती रहूँ में तेरे।
हो जाऊँ निर्भय इस जहाँ से सदा,
काया की माया सिमटती रहे।

एक बार तो सन्मुख आओ कान्हा !
पलकों में बिठा लूँ तूझे,
अपलक निहारूं तुझे..

जन्मों से आबद्ध रहा मन,
तेरे दर्शन की अभिलाषा में।
अब तो सन्मुख आजा कान्हा,
अपलक मैं निहारूं तुझे।

एक बार तो सन्मुख आओ कान्हा !
पलकों में बिठा लूँ तूझे,
अपलक निहारूं तुझे…

मौलिक एवं स्वरचित

© *मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २७/०६/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
Tag: गीत
5 Likes · 6 Comments · 769 Views
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