अपर्ण आराधना
अपर्ण आराधना चाहिए , मात की वंदना चाहिये
जन मन में हो संचरित शक्ति , ऐसी कामना चाहिये
भय मुक्त हो जाये नारी , हर ओर रहे विचरती
किसान खुदकशी न करें कभी , हरी भरी हो सब धरती
सभी को मिले सिर ऊपर छत , सभी को मिले नित वस्त्र
सुरक्षा का भूगोल तय हो , न चाहिये कोई अस्त्र
इस नवरात्र पर सदा सबकी , यही उपासना चाहिए
अपर्णा आराधना चाहिए , मात की वंदना चाहिये
अहंकार , लालच , क्रोध भावों , नर की पशुवृत्ति नाश हो
उदात्त , परम रचनात्मक शक्ति , जन आधि भौतिक समृद्धि हो
कोई बाले छली न जाये , शक्ति पर शक्ति चाहिये
राजतंत्र से हो नहीं पनाह , दरिन्दे बचना न चाहिये
इस नवरात्र पर बने सबकी , यह तो कामना चाहिये
अपर्णा आराधना चाहिए , मात की वंदना चाहिये
मेरे देश की श्रम शक्ति जो , भटकती न हो इधर उधर
हर श्रमिक के घर जले चूल्हे , जिन्दगी न किसी की भंवर
प्रजा का ध्यान हर पल नृप को , तो बने रहना चाहिये
भूख मिटे कैसे उनकी , यह भी भान होना चाहिये
इस नवरात्र पर हम सभी की , होनी भावना चाहिये
अपर्णा आराधना चाहिए , मात की वंदना चाहिये