अपमान
मौत इन्सान को एक ,
बार मारती है।
मगर अपमान का घूंट,
तिल तिल कर मारता है।
इन्सान गुस्से से बेकाबू होकर,
शब्दों पर न लगाम लगा पाता है।
सामने वाला न सहन कर पाता है।
इतना बेइज्जत मत करना किसिको,
कि वो जीते जी मर जाय।
खुद से भी नजरे न मिला पाए।
एक क्षण काभी भरोसा,
नहीं इन्सान का ।
फिर भी बोझा ढोता,
है वो जहान का।।
मत इतना घमंडी बन,
कि खुद को भगवान समझ बैठे।
एक दिन तो सबको मरना है,
ये भूल कर मत बैठ।