अपनों का ग़म
अपनों का ग़म
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बहुत आसान है
बड़े से बड़े ग़म में
औरों को समझाना
ढाँढस बँधाना,
जीवन चक्र और
दुनियादारी बताना,
शब्दों के मरहम से
हौंसला बढ़ाना।
मगर
जब बात अपने या
अपनों की आती है तो,
बड़ा कठिन होता है,
ग़मों का बोझ उठाना,
बहुत मुश्किल होता है
अपनों का ग़म सह जाना
बुद्धि, विवेक हर लेता है
इंसान सुध ,बुध ,धैर्य ,विवेक
जैसे खो देता है,
तब कुछ भी सोच पाना
निर्णय कर कदम उठाना
बड़ा मुश्किल होता है।
क्योंकि अपनों का ग़म
औरों के ग़म से
बहुत बड़ा लगता है।
औरों का बडे़ से बडा़ ग़म भी
सामान्य सा लगता है,
पर खुद का तो सर दर्द भी
दूसरे के कैंसर से भी
बडा़ लगता है।
तब कोई और हमें समझाता है
समय की धारा के साथ
चलना सिखाता है,
मुश्किल हालात में
ढाँढस बँधाता है,
अपनों का ग़म सहने के लिए
अनगिनत तर्क बताता है,
बड़ी मुश्किल से हमें धीरे धीरे
ग़मों की परिधि से बाहर लाता है,
फिर जीवन धीरे धीरे
सामान्य होता जाता है,
बड़े से बड़ा ग़म भी
समय के साथ साथ
सामान्य होता जाता है।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित