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3 Jan 2020 · 1 min read

अपने ही तो हैं

??कविता??

अपने ही तो हैं

हम बरगद बनके,
अपनों को छाँव बाँटते रहें,|

थोड़ा -थोड़ा करके हमे,
अपने ही काटते रहें,|

फूल बनके खुशबू का,
अपनों को खुशबू बाँटते रहें,|

खुशबू कम हो गयी हमारी,
थोड़ा-थोड़ा करके हमारी कलियों को अपने ही काटते रहें,|

बादल बरसतें नहीं हमारें
कहने से मगर,
हम उनकी ओर झाँकते रहें,|

सूखें पतछड़ और पेड़ों को,
हम अपने पीने का पानी
बाँटते रहें,|

हरयाली पा कर वो ही ,
हमारें खून को चाकतें रहें,|

गलती हमारी नहीं थी,
फिर भी हमें अपने ही डाटते रहें,|

हम उस डाॅट में अपनी,
गलतियों को छाँटते रहें,|

सूरज चाँद की ओर देखकर,
अपने दर्द को दाबते रहें,|

नये जख़म देने के लिए,
हमें अपने ही थोड़ा-थोड़ा करके
काटते रहें,|

हम बरगद बनके अपनों ,
अपनों को छाँव बाँटते रहें,|

थोड़ा-थोड़ा करके,
हमें अपने ही काटते रहें,||

लेखक—Jayvind singh

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 197 Views
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