अपने ही खून को यहां छलने लगे है लोग
धोखे यूं प्यार के यहां करने लगे है लोग
हाथों में हाथ डालके चलने लगे है लोग
खाने को घर में दाना नहीं बैठने को छांव
झूठी_ तसल्ली देंके प्यार करने लगे लोग
जीवन दिया है जिसने उसकी याद तक नहीं
अपने ही_ खून को यहां_ छलने लगे है लोग
चलती अगर_ कहीं जो_बहु बेटियां दिखी
तिरछी_निगाह से_ उन्हें तकने लगे है लोग
कृष्णकांत गुर्जर