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4 Oct 2020 · 1 min read

अपने वादे पे न आये तो मोहब्बत कैसी

अपने वादे पे न आये तो मोहब्बत कैसी
फिर किसी बात की भी हमसे शिकायत कैसी

दिल की बाज़ी में तिजारत न सियासत की जगह
है किया प्यार सियासत से तो उल्फ़त कैसी

क्यों ज़माने ने दिवानों को ग़लत ठहराया
दिल के मासूम दिवानों से अदावत कैसी

लाख पूजो के पढो रोज़ किताबें लेकिन
रब के आगे न झुका सर तो इबादत कैसी

क़ाफ़िला कैसे लुटा आप ही सरवर जब थे
की तो परवाह नहीं फिर ये हिफ़ाज़त कैसी

क्यूँ ये दावे भी बहुत आप मदद के करते
सर पे इल्ज़ाम लगाया है इनायत कैसी

दूसरों के जो कभी काम नहीं आती है
क्या है दुनिया ये भली औ’र ये शराफ़त कैसी

झूट ले भी हो रहा जान किसी की उस पल
जाँ किसी की न बचा पाए सदाक़त कैसी

दिल सभी के थे मगर और दुखी पहले से
साथ की सबके ही ‘आनन्द’ शरारत कैसी

– डॉ आनन्द किशोर

2 Likes · 152 Views
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