Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Jun 2023 · 1 min read

सियाचिनी सैनिक

दुनिया जहॉ मौत देखती
हम वहॉ खेल लेते है !
बस तिरंगे की शान में
हर मुश्किल झेल लेते हैं !

दुनिया की सबसे ऊंची
ये सियाचिन की है चौकी !
दुष्ट दुश्मन,मौसम से रण में
पूरी ताकत हमने है झौकी !

शौर्य साहस देख हमारा
ये सारी दुनिया है चौकी !
जहाँ इधर मेरे सिंह दहाड़े
उधर दुबकी लोमड़ीया भौकी !

परिंदे तो छोड़ों जहॉ
बस मौत का राज होता हैं !
मात देना मौत को भी
एक फौजी का अंदाज होता हैं !

दुश्मन से बडा़ जहॉ
मौसम जानी दुश्मन है होता !
इरादों की फौलादी गर्मी में
वो बर्फ की रजाई में ही सो लेता !

हरपल बैठी मौत ताक में
खेलती जिंदगी ऑख-मिचौली !
ये मौत भी हार मान जाती
जब हिम्मत जाती है तौली !

मजाल शत्रु देखें ऑख ऊठा
देश की सीमाओं की ओर !
पल में ही छलनी कर के
देंगे दुश्मन को झकझोर !

घुटने,कमर,मुंह दुश्मन के
सब बुरी तरह हम देगें तोड़ !
हमसे जो टकरायेगा
गर्दन उसकी देगें मरोड़ !

हम मौत से कभी डरते नही
खुद मौत दुश्मन की बन जाते !
भारत की सेना को देख
डरावने सपने दुश्मन को आते !

हर हाल में रहकर हमने
अपने प्यारे देश को बचाना है !
करे जहां जरा जुर्रत दुश्मन
वही उसे बर्फ में छै फिट दबाना है !
।। जयहिन्द । जयहिन्द की सेना ।।
~०~
मौलिक एंव स्वरचित: जीवनसवारो,जून २०२३.

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 180 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
View all
You may also like:
दीप प्रज्ज्वलित करते, वे  शुभ दिन है आज।
दीप प्रज्ज्वलित करते, वे शुभ दिन है आज।
Anil chobisa
बेवफाई उसकी दिल,से मिटा के आया हूँ।
बेवफाई उसकी दिल,से मिटा के आया हूँ।
पूर्वार्थ
!! ख़ुद को खूब निरेख !!
!! ख़ुद को खूब निरेख !!
Chunnu Lal Gupta
रोज़ आकर वो मेरे ख़्वाबों में
रोज़ आकर वो मेरे ख़्वाबों में
Neelam Sharma
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
रात का रक्स जारी है
रात का रक्स जारी है
हिमांशु Kulshrestha
समय
समय
Neeraj Agarwal
स्मृतियाँ  है प्रकाशित हमारे निलय में,
स्मृतियाँ है प्रकाशित हमारे निलय में,
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
"संयम की रस्सी"
Dr. Kishan tandon kranti
24/247. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
24/247. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
अश्रु
अश्रु
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
तो तुम कैसे रण जीतोगे, यदि स्वीकार करोगे हार?
तो तुम कैसे रण जीतोगे, यदि स्वीकार करोगे हार?
महेश चन्द्र त्रिपाठी
मैं तो महज शमशान हूँ
मैं तो महज शमशान हूँ
VINOD CHAUHAN
■दोहा■
■दोहा■
*Author प्रणय प्रभात*
इतना कभी ना खींचिए कि
इतना कभी ना खींचिए कि
Paras Nath Jha
सुनो जीतू,
सुनो जीतू,
Jitendra kumar
ख़ुद अपने नूर से रौशन है आज की औरत
ख़ुद अपने नूर से रौशन है आज की औरत
Anis Shah
वैशाख का महीना
वैशाख का महीना
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
"ख़ूबसूरत आँखे"
Ekta chitrangini
मुकाम यू ही मिलते जाएंगे,
मुकाम यू ही मिलते जाएंगे,
Buddha Prakash
खोखला वर्तमान
खोखला वर्तमान
Mahender Singh
**कुछ तो कहो**
**कुछ तो कहो**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
*भीड़ से बचकर रहो, एकांत के वासी बनो ( मुक्तक )*
*भीड़ से बचकर रहो, एकांत के वासी बनो ( मुक्तक )*
Ravi Prakash
थूंक पॉलिस
थूंक पॉलिस
Dr. Pradeep Kumar Sharma
नवयौवना
नवयौवना
लक्ष्मी सिंह
सुन्दरता की कमी को अच्छा स्वभाव पूरा कर सकता है,
सुन्दरता की कमी को अच्छा स्वभाव पूरा कर सकता है,
शेखर सिंह
" जिन्दगी के पल"
Yogendra Chaturwedi
परिवार होना चाहिए
परिवार होना चाहिए
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
** चीड़ के प्रसून **
** चीड़ के प्रसून **
लक्ष्मण 'बिजनौरी'
रिश्तों में झुकना हमे मुनासिब लगा
रिश्तों में झुकना हमे मुनासिब लगा
Dimpal Khari
Loading...