अपने रंग में रंग दो न
कान्हां की मुरली जैसी,
धुन कहाँ से लाऊँ।
बीच भवर में फँसी है नैया,
उस पार मैं कैसे जाऊँ।
तुम्हीं आकर देखों न कान्हां,
किस हाल में मैं पड़ी हूँ।
तेरे रूप रंग में ढल जाऊँ,
ऐसा एक रंग मुझे भी दे दो।
बेरंग पड़ी इस दुनियाँ में,
कुछ अपने रंग भी भर दो न।
जिस मोह में मैं फसीं हूँ,
उस मोह से मुक्त कर दो न।
बेरंग पड़ी इस दुनियाँ में,
अपने रंग में रंग दो न।
जिस संग का कोई अंत न हो,
ऐसा एक संग साधो न।
बीच भवर में फसीं हैं नैया,
तुम्हीं पार लगा दो न ।