अपने किरदार को किसी से कम आकना ठीक नहीं है …..
अपने किरदार को किसी से कम आकना ठीक नहीं है …..
अपना घर संभालो दूसरों के घरों में झांकना ठीक नहीं है,
कई ठाकरों के बाद जिंदगी जीने का सबब आया है……
रास्तों का तजुर्बा जिसे उसके कदम नापना ठीक नहीं है!
कवि दीपक सरल