अपने अपने ही होते हैं
जो खुश हुए वे अपने ना थे ,जो अपने थे , वे कभी खुश ना हुए
‘अपने ‘शब्द की परिभाषा ही नहीं बता पाया कोई।
कभी अपने ,अपने नहीं होते, कभी अपने, बने पर पराये कोई।।
बड़ी विसंगति है,इस शब्द में ,इसे कैसे समझा जाए।
बहुत किया और कर रहे, लेकिन अपनों को खुश रखना पाए।।
वह कौन सा कार्य है ,जिससे पता चले कौन अपना कौन पराया।
ईश्वर ने सगे संबंधी बना दिए ,लेकिन मन एक ना कर पाया।।
जब सहोदर है ,मा एक ,पिता एक, तो क्यूं नहीं मन एक।
हे विधाता !ऐसा क्या करें, विसंगतियां दूर हो सबका मन हो एक।।
अपनों के अपनापन से ज्यादा अच्छा ,परायो का अपनापन लगता।
चाह कर भी परायो को छोड़, अपनों के साथ ही खड़ा होना पड़ता।।
अपने-अपने हैं ,कभी अलग हो नहीं सकते।
इसलिए, फिर क्यूं अपने अपनों से ही खुश हो नहीं सकते।।