अपनी साख बचानी पड़ती है
अपनी साख बचानी पड़ती है
बुझती हूई आग जलानी पड़ती है
नाराजगी का दायरा चाहे जो कुछ भी हो
किसी से उम्रभर की दोस्ती हो जाए तो निभानी पड़ती है
बहुत किमती होने का यही खसारा है
हर किसी को अपनी किमत बतानी पड़ती है
बेवजह ताकत का मुजायरा मुनासिब नही तनहा
पर कभी मुखालफिनों को औकात दिखानी पड़ती है