अपनी सदाकत के अरकान नही मरने दिए
अपनी सदाकत के अरकान नही मरने दिए
जमीन मे मिल गये अरमान नही मरने दिए
अपने अंदर के जलजलों को रवां दवां रखा
अपने ख्यालातों के तूफान नही मरने दिए
सब कुछ मार दिया हमने गर्दिश के पहलू मे
मगर तेरे खुसुसी एहसान नही मरने दिए
कितने बावफ़ा हैं हम लोग की बिछड़ के भी
बरबाद मुहब्बतों के जहान नही मरने दिए
उसकी जिद मे दर बदर हो गये हम सब लोग
हिजरत कर गये मगर मकान नही मरने दिए
मेजबानी को बखूबी निभाया है हर बार
खुद मर गये मगर मेहमान नही मरने दिए
हम हाकिम थे हम पर थी सब की जिम्मेदारी
हम खुद लड़े हमने दरबान नही मरने दिए
मारूफ आलम