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14 Oct 2017 · 1 min read

“अर्चना’ यूँ दिवाली मनायें चलो

अपनी माटी के दीपक जलायें चलो
तेल बाती जला तम भगायें चलो

हम वतन अपना उन्नत बनायें चलो
माल जो हो स्वदेशी वो लायें चलो

फोन से काम अपना चलायें नहीं
देने शुभकामना मिलने जायें चलो

रह रही है रसोई में खामोशियाँ
प्यार में पाग रिश्ते पकायें चलो

तज पटाखे वो दें जो प्रदूषण करें
अपना पर्यावरण भी बचायें चलो

आयें खुशियां अनेकों रँगों में रँगी
द्वार पर हम रँगोली सजायें चलो

जगमगा जायें अपनी ये धरती गगन
“अर्चना’ यूँ दिवाली मनायें चलो
डॉ अर्चना गुप्ता

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