*अपनी धरती छह ऋतुओं की, इसकी हर छटा निराली है (राधेश्यामी छं
अपनी धरती छह ऋतुओं की, इसकी हर छटा निराली है (राधेश्यामी छंद)
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अपनी धरती छह ऋतुओं की, इसकी हर छटा निराली है
कभी पूर्णिमा उजली वाली, तो कभी अमावस काली है
कहीं खाइयॉं ऊॅंचे पर्वत, सागर विशाल की गहराई
धन्य हुई जिह्वा जो इसने, तेरी यशगाथा मॉं गाई
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451