अपनी झलक ये जिंदगी
दिखा दे अपनी झलक ये जिंदगी,
देखा वो राहों में गुनगुनाए पड़ी
देखो इधर उधर ढूंढा बहुत
पर कम्बक्त है न साथ खड़ी,
खेले लुक्का छिपाई,
आंख मिचौली कर मुस्कुराए खड़ी
दिखा दे अपनी झलक ये जिंदगी।
न जाने कब कहां तुझसे खफा,
ये जिन्दगी
नही तो समझाए वो मुझे,
मै भी उसको समझाया करता
गए पल सब बीत,
याद भी यूं य नही कब दिखाए
दिखा अपनी झलक ये जिंदगी ।
मैंने पूछा क्यों दिए दर्द बड़े
दिखी अपनी झलक जिन्दगी की।
बोली जिन्दगी , पगले। मैं ही हुं जिन्दगी
कभी हसी पड़ी, कभी दुखी पड़ी
पर तुझे जीना सिखाया,
दिखा अपनी झलक ये जिंदगी