अपनी चाह में सब जन ने
अपनी चाह में सब जन ने,
राह बनायी स्वार्थ भाव से,
भूल गये किस पर है निर्भर,
उस प्रकृति को भी हानि पहुँचायी।
अपनी चाह मे सब जन ने,
सुन्दर प्रकृति को हानि पहुँचायी,
निस दिन जिसकी नदियों से पीते जल,
अन्न उस धरा का खाते है,
वनों के जिसके लेते है औषधियाँ और फल,
उस वायुमंडल के तल मे जीते है।
अपनी चाह मे सब जन ने,
सुन्दर प्रकृति को हानि पहुँचायी।
संसाधन को खूब है ढोया,
कूड़ा -कचरा पैदा कर रोया,
नयी तकनीक तो खूब बनाई,
प्लास्टिक और ई-कचरा उपजाये।
अपनी चाह मे सब जन ने,
सुन्दर प्रकृति को हानि पहुँचायी।
ध्यान रखना ऐसी प्रकृति का,
जीवन अमूल्य जुड़ा है जिस पर,
निस्वार्थ हमें दिया है सब कुछ,
रक्षा उसकी करना सब जन।
अपनी चाह मे सब जन ने,
सुन्दर प्रकृति को हानि पहुँचायी ।
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।