अपनी क़सम न दो मुझे लाचार मैं भी हूँ
अपनी क़सम न दो मुझे लाचार मैं भी हूँ
मजबूरियों के हाथ गिरफ्तार मैं भी हूँ
मैं देख ये रहा हूँ कहाँ तक हैं किमतें
दुनिया समझ रही है खरीदार मैं भी हूँ
दुनिया तो खैर है ही ये जैसे भी है मगर
कुछ अपनी हालतों का ‘ख़तावार’ मैं भी हूँ
अब इस त’ल्लुक़ात को आगे बढाएें हम
तू बे’वफा नहीं तो वफादार मैं भी हूँ
सूरज पहन के कौन निकलता है रात मैं
बुझते हुऐ चराग़ के इस पार मैं भी हूँ
– नासिर राव