अपना हुआ है
जहां देखतीं हूं वहां तुम ही तुम हो !
ये सच है या आँखों को धोखा हुआ है।।
बुलंदी ने मगरूर इतना किया है
अलग तो तभी खुद से साया हुआ है।।
रुला ही गया आसमां का यह रोना ।
सवेरे जो खेतो पे जाना हुआ है ।
कभी हार अंधे का पकडा है क्या जो-
कि तुमपे ही ऐसा भरोसा हुआ है।।
हुआ क्या मुकम्मल कभी इश्क ,बोलो !
ये मकसद भी कब क्या अपना हुआ है।।
आरती लोहनी