अपना सब संसार
अपनी मिट्टी, महल है अपना
अपना सब संसार
सब कुछ अपना ही अपना है
कहाँ दूसरा यार?
हमीं ब्रह्म हैं, पंच तत्व हम
हम ही हैं ब्रह्माण्ड
हम ही हैं सारी रामायण
हम ही हैं हर काण्ड।
सिवा हमारे नहीं कहीं कुछ
मत भटको, भटकाओ
‘ब्रह्म अनामय अज भगवन्ता’
मुक्त कंठ से गाओ।।
हरि है वही, वही है शंकर
वह ही विधि विज्ञानी
सबमें ब्रह्म, ब्रह्म में सब हैं
मायामय हर प्राणी!
महेश चन्द्र त्रिपाठी