अपना वजूद बना के रखो
अपना वजूद बना के रखो
अपना रूतबा बना के रखो
कायर न बनो न बनने दो
अपनी सांस में मुझ को बसा के रखो !!
धड़कन धडकती है बस तेरे लिए
सांस भी नाम लेती है तेरे लिए
तुझ को मिलने का दिल करता है
ओ हम सफर, अपनी तुम आस बंधा के रखो !!
कभी तो मिलेगा वो समां
जब मुद्दत के बाद होगी मुलाकात
गुजारिश है उस खुदा से उस के लिए
उस वक्त की इन्तेजार दिल में बसा के रखो !!
अजीत तलवार
मेरठ