अपना मुकदमा
अपना मुकदमा कोई दूसरा लड़ नहीं सकता।
कोई कितना ही दानी क्यों ना हो?
लालची लोगों के बीच में।
लालच का घड़ा कोई भर नहीं सकता।
देखिए कितने शातिर कितने निर्लज
किस्म के रिश्ते बन जाते हैं?
शर्मो हया के पार
यह अपना घर पाते हैं।
ऐसे में किसी एक की सहानुभूति
का असर! कुछ कर नहीं सकता।
हो जाते हैं टुकड़े-टुकड़े
खंड खंड में बट जाते हैं।
गिरते है दुनियां की नजरों में ,
और अपनी नजरों में बड जाते है ।
ऐसे लोगों की होती बंदर बाँट ,
अंत में खाली हाथ घर जाते है ।
अपना मुकदमा कोई दूसरा लड़ नहीं सकता।
कोई कितना ही दानी क्यों ना हो?
लालची लोगों के बीच में।
लालच का घड़ा कोई भर नहीं सकता।
तनहा शायर हूँ – यश