अपना बचपन
मैं झुठलाना चाहती हूँ
अपना बड़ा होना ,
फिर से पाना चाहती हूँ
अपना बचपना ,
छोटी मैं गिनतियों में रही
बड़ी मैं उम्मीदों मेंं रही ,
अल्हड़पन से अनजान
समझदारी हमेशा रगो में बही ,
मेरे जीस्म से क़तरा – क़तरा समझदारी बहा दो
और वापस से अल्हड़पन चढ़ा दो ,
चिंता फिक्र से बेखबर
जिम्मेदारी से मुक्त होकर
उम्र को भुला कर ,
फिर से छोटी होना चाहती हूँ
हाँ ! मैं फिर से बचपन जीना चाहती हूँ ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 13/11/17 )