अपना प्रिय
प्रिय का प्रिय बस मोबाईल है
जो चेहरे पे लाता इस्माइल है
जुल्फ घनेरी है प्रिय की
क्या जुल्फों की स्टाईल है
प्रिय जैसा प्रिय मिलना मुश्किल
अरे प्रिय की बात निराली है
प्रिय जिस दिन घर पर आ जाएँ
मानो उसी रोज दिवाली है
प्रिय के प्रियतम का दिल
बाग़- बाग़ हो जाता है
प्रिय ज़ब अपना फोटो वाला
स्टेटस फेसबुक पर लगाता है
प्रिय के अँखियों की दुर्लभ भाषा
बस प्रियतम को समझ में आती है
ज़ब प्रिय मोबाईल से बतियाते है
हर बातें सुलझ जाती है
प्रिय के जैसा हो पाना
मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं
प्रिय के बिन प्रियतम की रात नहीं
प्रिय के बिन होता नहीं दिन हैं
मन करता है मेरा कि
प्रिय का खूब गुणगान करें
प्रिय गुणों के अथाह सागर हैं
हम कितनी बार बखान करें
-सिद्धार्थ