अपना जीना कम क्यों हो
यहां ज़श्न हो
मातम क्यों हो
आख़िर बोझिल
मौसम क्यों हो…
(१)
चाहे लाख यहां
पतझड़ आए
चारों तरफ
वीरानी छाए
जब चिड़ियों का
चहकना कम न हुआ
तो अपना जीना
कम क्यों हो…
(१)
ऐसी चिलचिलाती
धूप में भी
हवा के विकराल
रूप में भी
जब फूलों का
महकना कम न हुआ
तो अपना जीना
कम क्यों हो…
(२)
चाहे दुनिया में
महामारी आए
लोगों में मौत की
दहशत छाए
जब दिलों का
धड़कना कम न हुआ
तो अपना जीना
कम क्यों हो…
(३)
ये अमावस की
काली रात फिर भी
हाथों को नहीं
सूझे हाथ फिर भी
जब तारों का
चमकना कम न हुआ
तो अपना जीना
कम क्यों हो…
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Shekhar Chandra Mitra
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