अपना गांव
केतना बदल गइल बा गांव”
घर घर संस्कृति शहर वाली लागल पसारे पाँव
एसी/कूलर के हवा में दब गइल बरगद के छाँव
समय के संगे केतना बदल गइल बा गांव !
न रहल पुरनका लोग, न रहल बात पुरनका
किस्सा-कहानी बन गइल, सगरी चीज़ निमन का !
नवका फैशन में टूट गइल, सब लाज हया के डोर,
भवे-भसुर, सास-ससुर के, रिश्ता भइल कमजोर !
मत पुछि त बढ़िया होइ, आज संस्कार के दाशा
अब त लड़िका मारे बाप के, देखे लोग तमाशा !
केहु का कही के, मन से अब निकले लागल डर
गाव में बाबू जी से पहिले ही, बेटी खोज ले वर !
बदलल चाल-चलन के साथे ही, भेस भूषा पहनाव
फूफा,फुआ ,काका,काकी, बिसरल सगरी नाव
समय के संगे केतना बदल गइल बा गांव !
सोहर, झूमर होरी के लोग, भूल गइल बा गीतिया
छूछे- छूछे बीत जाले छठ ,पीढ़िया,खर-जीउतिया !
बिरहा ,निर्गुन, चइता त सुने के खूब मन तरसे,
बाकिर अपने में बेसास लोगवा निकले नाही घर से !
प्रेम अउर भाईचारा में, हाकल डाइन लागल,
दोसरा के देख के जरे के डाह मन में जागल !
पहिले जेकर बतिया मन, में मिसरी के रस घोले
अब पता ना उहे लोगवा, काहे तुरहा जइसन बोले !
पर्व त्योहार में भी नइखे,अब पहिले जइसन भाव,
बिना मूँछ के लोगवा, मूँछ पर फेरत बाटे ताव
समय के संगे केतना बदल गइल बा गांव !
कट गइल सगरी बाग-बगीचा, मुस्मात भइल फुलवारी
शहर में बसे के सबके, धइले बा घनघोर बीमारी,
सुख गइल सगरी पोखरा-इनार, नहर भइल बियाबान
अपना दशा पर फफक- फफक के रोअत बा खलिहान !
गांव के लोगवा के ही आपन गांव ना निमन लागे,
खीर-पूड़ी, के छोड़ के लोगवा पिज़्ज़ा के पीछे भागे !
मट्ठा-छाछ के जगे पिये लोग पेप्सी कोला ठंडा
क्रिकेट के आगे मुहधोआ, हो गइल बा गुलीडंडा !
पिछला एक दसक में भइया, गज़ब भइल बा बदलाव
डिजिटल दुनिया के पड़ल बा, बहुत गहरा प्रभाव
समय के संगे केतना बदल गइल बा गांव !
अनिल आदर्श