अपना गाँव
लकड़ी उपरी चूल्हा चौका, गाँव स्वर्ग से न्यारा है।
हर पत्ता हर जर्रा-जर्रा, हमें जान से प्यारा है।।
सोंधी मिट्टी की सुगंध से, सुरभित है कोना-कोना।
सबको जीवन देने वाली, उगल रही वसुधा सोना।।
नमन करें उस कृषक ईश को, जिसने इसे सँवारा है।।
हर पत्ता हर जर्रा-जर्रा, हमें जान से प्यारा है।।
टूटी खाट ओढ़कर कथरी, शयन निरन्तर करता है।
हाँफ-हाँफ कर हल का स्वामी, सुख संचारित करता है।
सदा पंक में चलकर सबको वह दिन रात उबारा है
हर पत्ता हर जर्रा-जर्रा, हमें जान से प्यारा है।।