अपना कंधा अपना सर
अपने कंधे पर सर रखकर, आप कभी भी सो नहीं सकते।
और खुद अपने को गले लगाकर,जीवन में तुम रो नहीं सकते।।
एक दूजे लिए जीयें जो हम,तो उसे कहते हैं जीना जिंदगी।
लेकिन वक्त उसी को देना,जो चाहे तुमसे निभाना बंदगी।।
याद रख्खो ये सच्चे रिश्ते,कभी पैसे के मोहताज नहीं होते।
ये कभी भी मुनाफा नहीं देते,फिर भी जीवन अमीर बना हैं देते।।
अपनी खुशियां बाँट लो इनसे,इनके दुःख में खड़े रहो तुम।
लड़ो झगड़ो चाहे जितना इनसे,पर अंत में साथ ही खड़े रहो तुम।।
ऐसे रिश्ते पाने की खातिर तुमको,कठिन डगर पर जाना पड़ता है।
कांटों में से उलझ उलझ कर,चुन कर सुंदर गुलाब लाना पड़ता है।।
यूँ तो रिश्ते बने बनाये तुमको, माँ की कोख से ही मिल जाते हैं।
किंतु जरा तुम सोच के देखो,कितने उनमें से निभ पाते हैं।।
लाभ हानि है जहर रिश्तों में,इसको बीच में आने ना देना।
गुस्से में कही गई बात हमेशा,कड़वा घूंट समझ कर पी तुम लेना।।
कहे विजय बिजनौरी रिश्ते निभाना,नहीं तेरी मजबूरी है।
फिर भी रिश्तों में बंध कर रहना,जग में सबके लिए जरूरी है।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी