अपना-अपना दुःख
शहर के अन्तिम छोर में स्थित खम्भे ने खींचे हुए तार के माध्यम से शहर के बीच व्यस्त बाजार में लगे खम्भे से चर्चा आरम्भ की- बताओ दोस्त तुम कैसे हो?
तब शहर के बीच व्यस्त बाजार में लगे खम्भे ने कहा- पहले आप सुनाओ, हमें कैसे याद किए?
पहले खम्भे ने कहा- ‘यहाँ तो अक्सर वीरान और सन्नाटा रहता है। झींगुर की आवाजें अक्सर रूहें कँपा देती है। बताओ तुम कैसे हो?’
दूसरे खम्भे ने कहा- ‘बाजार का व्यस्त मार्ग होने से गाड़ियों के शोर से तंग आ जाता हूँ। पास में शराब दुकान होने से नशेबाजों का अड्डा बन जाता हूँ, वे चखना खाकर कागज के जूठे प्लेट मेरे पास ही डाल देते हैं। शहर के आवारा कुत्ते भी उन कचरों के ढेर में अक्सर गन्दे कर जाते हैं।’
ये सब बातें सुनकर शहर के आखिरी छोर में स्थित खम्भा कुछ सुकून महसूस करने लगा।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंट राइटर अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।