अन्न देवता
अन्न देवता
तू है सच्चा एक –
अनोखा,
बिना छत्र का –
मटमैला,
मटमैला,
राजा इस धरती का।
हो कर –
मद में चूर,
नशे में झूल,
झमेले में माया के।
भूल चुके हैं –
तेरी मेहनत।
माटी से सोना करने की
तेरी ज़हमत।
नहीं रूकेगा –
आयेगा –
ऐसा परिवर्तन।
तेरे हंसते हरे खेत –
इस मानवता के –
तीरथ हांगे।
म|टी कहे पुकार वेफ
धरती माता,
तेरे हल की –
तेज धार से –
आलोकित हो,
साथ तुम्हारे –
अपने को ले,
नये रूप में –
नये साज़ में,
संवर सकेगी।
महक उठेगी।।