अन्नदाता,तू परेशान क्यों है…?
अन्नदाता,तू परेशान क्यों है…?
जिसने तुम्हारे खून पसीने की कमाई,
सदा ही मिल बांट कर खाई,
तेरे मेहनत की कमाई से,
अपनी महलें है बनवाई ।
समझो तो सही,वो आढ़तिया ही !
भला तुझ पर मेहरबान क्यों हैं..?
अन्नदाता, तू परेशान क्यों है…?
कौड़ी के मोल फसल बेच,
सूली पर चढ़ जाते थे किसान।
अब उन्हें ही पंख फैलाकर ,
अपने सपनों की उड़ान पूरी करने में,
इतनी घबराहट क्यों है ?
अब तो सामने खुला आसमान है ।
फिर भी अन्नदाता, तू परेशान क्यों है…?
याद कर तू अतीत को,
जब इन गिद्धों की टोली द्वारा,
कहा जाता था कि ,
किसान अपनी फसलों को ,
औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर क्यों है?
इन्हें तो खुला आसमान चाहिए ,
अब वो ही अपनें लफ़्ज़ों पे बेईमान क्यों है…?
अन्नदाता, तू परेशान क्यों है…?
फसल उपजाना मन से ,
पर दूर रहना कपटी राजनीतिज्ञों और जयचंदों से।
संविदा खेती तो कोई ,
अनिवार्य शर्त नहीं है सबके लिए।
न्युनतम समर्थन मुल्य ,
कभी खत्म नहीं होनेवाली ।
इन सब बातों को जानते हुए भी तू अनजान क्यों है ?
अन्नदाता, तू परेशान क्यों है…?
कुटिल राजनीतिज्ञों के झांसे में मत आना ..!
वो तो हैवान है ।
सोच तू जरा…
जो करते सदा स्वार्थ की खेती ,
उन्हें फसलों की खेती से क्या मतलब ।
वो भला तेरे लिए दे रहे बलिदान क्यों हैं… ?
अन्नदाता, तू परेशान क्यों है…?
देश तोड़ने वालों अराजक तत्त्वों से मिलकर ,
राहगीरों का सर डंडे से कुचलने वाले ,
भिंडरावाला के चित्रोंवाले टीशर्ट पहन ,
सड़कों पर आतंक मचाने वाले ,
किसान तो नहीं हो सकते ।
ये सब जानते हुए भी सारा देश हैरान क्यों है…?
अन्नदाता, तू परेशान क्यों है…?
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०५ /१०/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201