अन्तर्मन
अन्तर्मन
अन्तर्मन का सत्य कथन
यदि सुनता मानव- मन
न होता भ्रष्टाचार
न ही कोई दुराचार
करुणामय होता संसार
समता होती नर हो या नार।
अधिकार होते संरक्षित
किसी से न कोई कंपित
प्रेममय होता जीवन
सहिष्णु होता जन-जन
स्वर्ग-सा सुन्दर
लगता ये चमन
धरती हो या फिर गगन
अन्तर्मन तो है दर्पण
जिसमें दिखता स्व-प्रतिबिम्ब
‘भग ‘वान है इसके बिम्ब
जब होता दुविधा का भान
यही देता विवेक – ज्ञान ।
डॉ० उपासना पाण्डेय