अनोखी सीख
नफरत को नफरत से मिटाने की अनोखी सीख हमें दे रहे ,
“बारूद के शोलों” से घरों का अंधेरा मिटाने की सीख दे रहे I
गुलशन के फूल बनने की नहीं है कोई चाहत ,
फूलों को सवांरने-निखारने की नहीं है चाहत,
फूलों के ठेकेदार बनने की है बस एक चाहत ,
माली बनकर “फूलों” पर राज करने की चाहत I
नफरत को नफरत से मिटाने की अनोखी सीख हमें दे रहे ,
आग के अंगारों के ऊपर आशियाना बनाने की सीख दे रहे I
बगिया को आग के हवाले करके उसपर फिर पानी छिड़कने से क्या फायदा ?
बगिया की हरियाली से ज्यादा अपना नफा-नुकसान देखने से क्या फायदा ?
बगिया के पौधों की नस्लों को तहस-नहस कर फिर खाद देने से क्या फायदा ?
“ मालिक” की बगिया में नफरत का कंटीला पौधा लगाने से हमें क्या फायदा ?
नफरत को नफरत से मिटाने की अनोखी सीख हमको दे रहे ,
प्यार की बगिया में नागफनी का पौधा लगाने की सीख दे रहे I
नादान – इंसान, एक दिन तू भी बगिया की माटी में मिल जायेगा ,
टूटे पत्ते की तरह पेड़ की डाल से फिर कभी भी नहीं जुड़ पायेगा ,
सत्ता और गुमान का छद्म घरोंदा भी तुझसे बहुत पीछे छूट जायेगा ,
“राज” इंसानियत का दामन ही तुझे “ मालिक ”से रूबरू कराएगा I
नफरत को नफरत से मिटाने की अनोखी सीख हमें दे रहे ,
“बारूद के शोलों” से घर का चिराग जलाने की सीख दे रहे I
देशराज “राज”