अनुराग प्रेम प्यार
मानवीय सरहदों पर
जम गई है घनी बर्फ
क्रोध, वैर-विरोध की
लोभ और अमोह की
प्यार में व्यापार की
रिश्तों में टकराव की
बेईमानी के प्रसार की
झूठ-मूठ के प्रचार की
मोह- माया जाल की
बड़ों के तिरस्कार की
छोटो को दुत्कार की
सत्कार अभाव की
बदलते स्वभाव की
गुरुजन अपमान की
शिष्यों के निर्माण की
स्वार्थों की दुकान की
अज्ञान के सम्मान की
ज्ञान के अपमान की
टूटते हुए असूलों की
मानवता की भूलों की
तमस के जमाव की
प्रकाश के रिसाव की
भाईचारा खिचांव की
आपस में कसाव की
फालतू बकवास की
दिल में ईर्ष्या वास की
अश्लील नवाचार की
गिरते शिष्टाचार की
कोई होगा चमत्कार
बदलेगा अशिष्टाचार
होगा कोई नवाचार
बदलेंगी सोच विचार
सरहदों पर हिमपात
बदलेगा यह संभ्रांत
सच में हो जाए ऐसा
कोई नहीं होगा वैसा
सबर का बांध टूटेगा
प्रेम -प्यार ही फूटेगा
सरहदें भी होंगी पार
होंगी हर्ष वर्षा अपार
अनुराग -प्रेम -प्यार
सुखविंद्र सिंह मनसीरत