पुस्तक-समीक्षा अनुगूंज ‘कविता-संग्रह’
पुस्तक समीक्षा-मनोज अरोड़ा
पुस्तक – अनुगूंज ‘कविता-संग्रह’
कवयित्री- उर्वशी चौधरी
पृष्ठ- 112
मूल्य-200
प्रतिध्वनि तो सबके अन्दर होती है फर्क केवल इतना है कि कोई उसे सुनकर गहराई में उतर जाता है तो कोई अनसुना कर देता है लेकिन रचनाकार अधिकतर इस ध्वनि को अपनी गूंज बना लेते हैं और उसी के आधार पर श्रोताओं व पाठकों को देते हैं शब्दरूपी अनमोल डोर, जिसे पकड़ वे दुनिया से दूर एक अलग डगर के राही बन जाते हैं। काव्य भी उसी प्रतिध्वनि में शामिल है जिसका रस वही महसूस करते हैं जो कविता के चाह्वान होते हैं और उनकी अन्त:हृदय की चाह को पूरा करते हैं वे कवि या कवयित्री जो दिल की सुनते हैं और कलम की स्याही के ज़रिए उन अल्फाज़ों को कागज़ पर उकेर दिया करते हैं।
युवा एवं नई सोच की धनी कवयित्री उर्वशी चौधरी ने अपना प्रथम कविता-संग्रह ‘अनुगूंज’ भी प्रतिध्वनि की तर्ज पर रचा है, जिसमें कवयित्री ने देश की व्यथा, आजादी का अर्थ, जि़न्दगी का मकसद, मन की पीड़ा एवं इन्सानियत के मतलब को इतनी सरलता से प्रस्तुत किया है जिसे पढ़कर पाठक ये जरूर विचारेंगे कि उर्वशी चौधरी आखिर कौनसे क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं?
पुस्तक में शामिल कविता ‘संतान’ में कवयित्री ने उन बुद्धिजीवियों को भेदभाव समाप्त करने का संदेश दिया है जो बेटे को तो प्रधानता में गिनते हैं लेकिन बेटी के जन्म पर आँसू बहाते हैं। ‘जश्न आज़ादी का’ कविता में कुरीतियों पर कड़ा प्रहार करते हुए लिखा है कि एक तरफ तो हम आजाद देश के वासी हैं लेकिन दूसरी ओर ऊँच-नीच के भेदभाव और छल-फरेब के मकडज़ाल में बुरी तरह फँसे होकर भी खुद को आजाद मानते हैं, ये कहाँ तक सही और कहाँ तक गलत है इसका निर्णय अगर हम स्वयं ही करें तो ज्यादा बेहतर होगा? ‘रावण’ कविता अंह को त्यागने का संदेश देती है तो ‘प्रीत तुम्हारी’ के चंद लफ्जों में जीवन का सार छुपा है। कवयित्री ने कड़ी को आगे बढ़ाते हुए ‘पथिक’ कविता के जरिए आगे बढऩे का संदेश दिया है जिसमें वे लिखती हैं कि तू मत चिन्ता कर पीछे की, क्योंकि जीवन तो बिना रुके, बिना थके चलते रहने का नाम है।
इसी प्रकार सिलसिलेवार कुल उनसठ कविताओं में सबसे अन्तिम पंक्तियों में उर्वशी चौधरी ने जो अभिव्यक्ति दी है वह आम से खास तक सबके लिए फायदेमंद साबित प्रतीत होती है, जिसमें कवयित्री कहती हैं—
न गुमाम करना कभी खुद पर इतना
कि बदगुमानी तुझे ही जलाने लगे
मिटाकर मेरी हस्ती यूँ खुश न हो
कल शायद तेरे भी न फसाने रहें।
उर्वशी चौधरी द्वारा रचित कविताओं को पढ़ते समय ऐसा महसूस होता है जैसे कवयित्री ने हर बात को सत्य लिखा है ये तो हम जानते ही हैं लेकिन मानने को कतई तैयार नहीं होते? ये प्रतिध्वनि ही है जो हमें सचेत करती हैं लेकिन हम न जाने क्यों सुनकर भी उसे अनसुना और अनदेखा कर देते हैं।
मनोज अरोड़ा
लेखक एवं समीक्षक
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