अनादि अपौरुषेय
हे तत्त्वदर्शीगण मुनीन्द्र !
अमलात्मा परमहंस , योगिन्द्र ;
ब्रह्मात्मका हे ब्रह्मविद्वरिष्ठ !
परात्पर परब्रह्म के ध्यानी
करूणा-वरूणालय ज्ञानी !
अनन्तकाल संवर्धित सर्वाधिष्ठान स्वप्रकाश
दग्ध धरा दिगंत आज जल रहा आकाश !
धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्दिक विधेय ,
कहां गये वो मंत्र , वेद अनादि अपौरुषेय !
परब्रह्म के बोध कहां, भूत की सृष्टि, भौतिकी प्रपंच ;
कहां वीर्य वैभव शक्ति आर्तव, कहां ओज तप पंचभिरेव पंच !
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’
पौष कृष्ण चतुर्दशी