*अनमोल हीरा*
अनमोल हीरा
बरकरार रहे मुस्कान चेहरे पर हमेशा
हमारे बस यही एक चाहत
रखने वाली माँ कहलाती है
अपने बच्चों के खातीर
रात-रात भर वो जागा करती है
बूंद भर आँसु देखें तो दिन भर
उन्हें सराहती और रात में खुद ही रोती है
सूरज की पहली किरण आने से
पहले ही वो उठ जाती है और
उसके ढलने तक यहाँ-वहाँ दौड़ लगाती है
जन्नत करते – करते सबकी जिंदगी
स्वयं वो नर्क की ओर ही चली आती है
पलक झपकते ही सभी की झोली
खुशियों से भर- कर अकेले ही
सब के गमों का बोझ वो उठाती है
अपनी जिम्मेदारियों को वो क्या खूब निभाती है।
लेकिन फिर भी कन्या जन्में जाने पर
दोषी वो कहलाती है,
अमान्य शब्दों से पूजी जाती है
अपनी नि:स्वार्थ सेवा का ऐसा
फल वो पाती है
इतना सब कुछ होने पर भी
नम ही बस वो रहती है,
अपनों की खुशियों के लिए
चुप-चाप सब कुछ सह जाती है
जाने ख़ुदा ने किस मिट्टी का हैं
बनाया एक माँ को
जो अपने ऊपर लगे सभी इंजामों को
अमृत की तरह पी लेती है।
तानों को लोगों का
आशीर्वाद समझती है,
गालियों को उनकी प्रसाद मानकर खाती है
चाहे कर लो कितने
पाठ और प्रार्थनाएं अनेक फिर भी
कभी नहीं ले पाओगें तुम एक माँ का स्थान
चाहे जितना जोर लगा लो
कर लो कोशिशें हजार
फिर भी न बन पाओगें तुम शीतल व सरल
उस माँ के समान,
जो अपने बच्चों की एक खुशी के लिए
लुटा दे अपनी जान
इसलिए मैं गर्व से कहती हूं
प्यार से हमेशा ही अपनी मां को गले लगा कर
सहला लिया करो कभी,
किया करो सदा ही धन्यवाद ईश्वर का
जिसने दिया है इतना सुन्दर उपहार तुम्हें भी।