अनमोल जिंदगानी है ।
चरागा जल रहा है हवाओ की मेहरबानी है,
हवाओ से जला है , हवाओं को ही बुझानी है ।
कैसे गुरूर करता अपने पर दो दिनों की जिंदगानी है ।
कितना परोपकार करूँ सोचता हूँ ।
परिवार के लिए रोटी भी कमानी है ।
नशे और नफरत में नही बर्बाद करनी ,
न मिलती है दुबारा अनमोल जिंदगानी है ।
#विन्ध्य #प्रकाश #मिश्र #विप्र