अनमेल के साथ
अनमेल के साथ कब तक रहोगे ।
सूरज को यूँ चाँद कब तक कहोगे ।।
जो चाहो किनारा , टकराना पड़ेगा ।
धाराओं के साथ कब तक बहोगे ।।
यदि फूल हो तुम तो कांटों के संग में ।
मिलेंगे तुम्हें जख्म कब तक सहोगे ।।
हवाओं के विपरीत गर थम न पाए ।
तो सूखे दरख्तों से कब तक ढहोगे ।।
प्रतिकूलताओं से भयभीत होंगे ।
तो अनुकूलताओं को कब तक गहोगे ।।