अनजान राहें अनजान पथिक
अनजान राहें अनजान पथिक मिलन कैसा ।
विहड़ विरान विक्राल व्याघ्र वाल तिमिर जैसा।
क्षण भर का मिलन ,उम्र भर का जलन, रहेगे फफोले ,
दिल का तार तार बने खुद पर भार, रहेंगे हम अकेले।
दुनियां में मिलन अय्यासी- अय्यारी के लगे हैं यहां मेले,
संग- संग न चले हम, दो डग न चले हम न चौसर खेले।
न गुम हुए गोट फिर भी लगे चोट, खेल ही यह ऐसा।।
अनजान राहें………..
पिछले युग के हम थे साथी, खुद मैं दीया शायद तुम बाती,
संग में शायद जले -जले,क्योंकि चिराग रौनके नहीं जाती।
पीढ़ियां बदल गई भले ही, लेकिन अग्न लगै क्यों बिन पाती,
तेरीआहट दे ठण्डक मुझको,वरना मारूत चक्कर न खाती।
गई वह शदी आई नई पीढी, हो गया शायद ज्यादा ही पैसा।।
अनजान राहें ………..
नदी के दो तीर मिलने की पीर ,सब यह व्यर्थ है भाई ,
चंदा,धरा देखे त्यागी फैला, वसुंधरा पर जूं पड़ै परछाई ।
शुक्ल पक्ष शायद दक्ष, विश्वामित्र पर मेनका ज्यों आई,
विश्वास घात विश्वामित्र साथ ,जग से छुपे ना ही छुपाई।
शायद भ्रम हुए थे, खोटे कर्म हुए थे, सब जैसे को तैसा।
अनजान राहें……….
शायद मिले हमको मिताई, लेकिन मिले कवि कविताई,
न संतुष्टि,समस्त सृष्टि, केवल खाक ही खाक नजर आई।
सत्य आज दिखें असत्य सपना,सुबह टुटी मिले चारपाई ,
तुम मे लीन लेकिन तुम विहिन, जीवन मजार लगे खुदाई।
रुन क्रंदन मौन विलाप कर, छोड़ जाएंगे हम तेरा ये देशा।।
अनजान राहें……
सतपाल चौहान ।