अनजान डगर
मयूर सा नाच उठा है मन
इक मनचाहा साथी पाकर
उड़ रही हूं जैसे आसमान पर
या हूं धरती पर ,कोई बताए आकर….
इंद्रधनुषी सपनों का संसार लिए
दिल बेकल है इक नई आस लिए
साथ चलना है, उड़ना है
मिल कर तय करना है
मीलों के सफर….
लेकिन
क्या इतना सरल है
उखड़कर दूसरी जगह बस जाना??
अन्तर्द्वन्द में उलझी
दिल में कई सवाल लिए
चल पड़ी हूं, वहां
जो है अनजान डगर
क्या मेरी दशा भी है
उस नन्हे पौधे सी??
जिसे कहीं और रोपा जाएगा
किसी और को सौंपा जाएगा
मुरझा जाएगा या होगा चेतन
कैसा है ये असमंजस?
कैसा ये आकर्षण?
मिलेगी जब पर्याप्त धूप
तो खिलेगा रंग रूप
कम भी मिलेंगे यदि
खाद पानी
फिर भी रचेगा ये
अद्भुत कहानी…
मिट रही हैं उलझनें
छंट रही हैं बदलियां
तैयार हूं चलने को, उस पर
जो है अनजान डगर…