अनचाहे फूल
चल रहा था उधेड़बुन में अकस्मात ,
यू ही नजर पड़ गई विस्मित फूलो पर।
सड़क के दोनों तरफ कैसी विडम्बना ,
चमन में एक फूल रास्ते के इस ओर।
तथा दूसरा दूसरी तरफ जुझ रहा था।।
मिलने के लिए उत्सुक तड़प रहे थे,
वास्तव में ये तड़प व्यर्थ ही तो थी ।
सिर्फ खूशबू ही उन दोनों फूलों को ,
सिर्फ यू ही महक कर उभारा दे रही थी।
मिलन दोनों का यहां असंभव ही था।।
पास से पथिक अनमने ढंगे से जा रहे थे ,
पथराई आँखों से घूरकर फूलों की ओर ।
मात्र सुन्दरता ही देख रहे थे मूक होकर ,
लेकिन विरह पीर तो भुगत भोगी ही जाने ।
झुक झुक दोनों फूल ताक झांक कर रहे थे ,
एक दूसरे को छिप -छिप,उमड़ -उमड़ कर।।
अचानक हवा का झोका आया,
नयन नीर तब खूब बहाया।
फूल टुट कर टूक टूक होकर ,
एक-दूसरे के पास आ गए थे ।
कुछ श्वास अब भी बाकी थी ,
जो उनके मिलन पर ठंडक दे रही थी।।
सतपाल चौहान।