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7 Jun 2023 · 1 min read

अनचाहा दर्द

खुद से खुद लड़ रही हूं,
अपने भीतर ही भीतर जल रही हूं।
दर्द ऐसा जो बता नही सकते,
दुनिया से बोल ओर गम बढ़ा नहीं सकते।
दुनिया तो मस्त अपने फायदे में,
और हम त्रस्त अपने गमों से।
सामना करु इस अनचाहे वैरी से कैसे?
करु उपयोग शस्त्र कौन सा,
जो दिला सके मुझे विजय,
इस अदृश्य, अनचाहे शत्रु से।
राह तो कोई होगा,
जो स्वाद चखा सके मुझे विजय का,
और,
पहुंचा दे मुझे अपनी मंजिल तक।
एक नई दुनिया में नई पहचान के साथ।

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