काश तू मौत होती
हम भुलाते रहे खुद को
सिर्फ उसे याद रखने के लिए
और उसने हमें ही भुला दिया
रक़ीब* को साथ रखने के लिए
दुख नहीं था कि वो मेरे साथ नहीं
गम था यही कि मैं पहले जैसा आज नहीं
कुछ कीजिएगा ज़नाब
मेरी वही मुस्कुराहट वापिस आ जाए
या तो ये पल गुजर जाए
या मेरी जान चली जाए
इस क़दर जीने से मौत बहुत अच्छी है
काश तू वही होती
कितनी भी बेवफ़ा होती
मगर एक दिन तो मेरी होती
वादा है हमारा भी उस पगली से
एक दिन भुला देंगे उसे
जब मुलाक़ात होगी उसकी मोहब्बत से
कसम से रुला देंगे उसे
चाहने वाले बहुत हैं इस दुनिया में
मगर मेरे जैसा पागलपन कौन लाएगा
कौन तुझे बात बात पर हंसाएगा
खुद रूठकर तुझे रुलाएगा और फिर
प्यार से गले लगाकर तुझे
खुद भी रो जाएगा
अब रहने दो तुम क्या जानो
और क्या तुमसे शिकायत हो
हम दुआ करेंगे ‘शायर’ को
कभी नहीं मोहब्बत हो
*रक़ीब – प्रेमिका का दूसरा प्रेमी